Sunday, December 9, 2012

इज़हार कर....!!!


इज़हार कर.. इज़हार कर..
उस इंसान-ए-जान का इज़हार कर,
जिस में हैं वो जां,
उस हिम्मत का तू इज़हार कर,
इज़हार कर.. इज़हार कर..
उस इंसान-ए-जान का इज़हार कर..!!

प्यार कर,
तू प्यार कर,
हसरत का ना तू इन्तजार कर,
इज़हार कर.. इज़हार कर..
उस इंसान-ए-जान का इज़हार कर.

बेतहाशा किए होंगे तूने झगड़े,
लड़ी होंगी कई लड़ाईया,
जीते होंगे कई तूने ताज,
पर उसके आगे बेबस हैं,
दुनिया के सब ज़ेवर,
इज़हार कर.. इज़हार कर..
उस इंसान-ए-जान का इज़हार कर..!!    



रह जाएंगे यहीं पर सब बिखरे,
रत्न, जो पाए हैं तूने जीकर,
भीड़ में खोया है क्यूँ तू,
गफलत में फंसा है क्यों तू,
जब इज़हार के हैं अनगिनत मौके..
इज़हार कर.. इज़हार कर..
उस इंसान-ए-जान का इज़हार कर..!! 

1 comment:

  1. Hi Umesh
    This is not merely a poem. Consider it the first ever moment of 'Darshan'. This wonderful piece is an outflow of optimism and hope. Help it sustain forever. Keep writing.
    Bye

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