Sunday, February 20, 2011

खुल के िजयो


कुछ िदनों से सोच रहा था िक अपने पर्शंसको को कुछ एसा प्रस्तुत करू के उनके सवालों का जवाब दे सकू , बस उसी कड़ी पर आधािरत मैं कुछ िलखने की कोिशश कर रहा हूँ. हमे इस जिन्दगी को बसर करना बोहत मुश्िकल और दिक्कतों भरा लगता है. इसका अगर कारन पूछा जाये तो शायद ही कोई बता पाए. शायद इसलिए की इसके पीछे कोई कारन ही नही है. इस इंसानों की दुिनया में अगर दो पल ख़ुशी के िबता लें यही अच्छा रहेगा. वरना यहाँ पर तो इंसान ही इंसान का खून पी रहा है. तो थोड़ी सी तो अकाल लगाओ, और िजन्दगी को िजन्दगी की तरह जी कर तो देखो. फिर ये दुिनया तुम्हे अपने आप अछी लगने लग जाएगी. अगर कुछ खता हो जाये तो कृपया करके मुझे आगाह जरुर करना...

भूल गया था िक कल्पना का सहारा िकतना जरूरी होता है
बस एक बहाव में बहता जा रहा था,
के एक िकनारा आया,
िजसकी जमीन तो पथरीली थी,
पर उस िकनारे को छोड़ने को िदल नहीं माना !!

सपना था या एक कडवी हकीकत,
िजन्दगी में जो हुआ - जो भी गुजरा,
क्या वो हकीकत भरी तस्वीर इतनी धुंदली थी,
जो अब लाख चाहने पर भी नहीं िदखाई रही !!

िजन्दगी में एक पड़ाव आता है,
वो सपना पूरा करने का दरवाज़ा िदखाई देता है
िजसके खुलने की आहट तो नहीं होती,
पर िजनदगी में कुछ पा लेने की चाह ऐसे हो नही पैदा होती !!..

गुजरता वक़्त बार-बार िसर्फ एक ही सवाल खड़ा कर रहा है,
िक िजस इंसान की जरूरत थी - क्या वो आ गया है ?
िक सर को िजस कंधे के सहारे की जरूरत थी - क्या वो यही है ?
बस इन्ही खयालातों में भटकना अच्छा लगता है !!

िजन्दगी अगर ऐसी ही कट गयी तो कोई िगला नहीं,
िदन अगर यूँ ही बीत गया तो कोई िगला नहीं,
िलखने में लफ़्ज़ों में कमी ना आये,
बस उसी पल का डर िदल में जगह बनाये बेठा है !!

िजन्दगी में िसर्फ दुःख और न-कामयाबी का ही एहसास िकया था ,
गुजरा क्या था ? सुख को ढढना - दुखों से कांपना ,
जान देकर भी ना जीता जा सके,
कुछ एसा ही था मेरा कारवां !!

िदल के अँधेरे में,
सुबह के सूरज की िकरण सा था वो,
डर की भयानक रात से,
ख़ुशी की सुबह िदखा गया वो !!

3 comments:

  1. is it your own creation. if yes,splendid !!!

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  2. Dear Umesh
    Firstly thankyou sir for dropping on my blog. It was totally unexpected and a nice surprise. To dream is the beauty of life and that is what keeps us going. Otherwise things are too difficult and it becomes impossible to sustain sometimes. Anyways a very beautiful creation. Keep writing and keep dreaming.
    Hope to see more from you in future.
    bye

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  3. "Dreams is not what you used to see while sleeping, but this are something which doesn't lest you sleep"
    -A.P.J Abdul Kalam.
    Mr.Mittal..
    According to me the 'dream', which we used to enjoy with blind eyes while sleeping is like a 'promise' to life. Which comes with some sort of probability to get erradicated from slight human memory. Whereas, dream experienced in daylight with open bulging eyes is something like 'committment to life'. So, i urge all of my readers to please keep having dreams with eyes open....

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