Sunday, April 17, 2011

यूँ ही सोचता हूँ ...

खुद ही सपने बुनता हूँ,
खुद ही उनको तोड़ता हूँ,
जिस भी राह पर चलता हूँ,
पाता खुद को, झंझोड़ता हूँ !

रूकना आता तो,
कब का थम चूका होता,
उस पथ पर इतना प्यार उमड़ आया है,
जागना भी, एक सपना है लगता !

सुरूर जो है छाया,
नशा सा है जिन्दगी में आया,
फिरता हूँ संभाले जिन्दगी की डोर को,
मुझको नही भाता मेरा अपना साया !

ये सफ़र ही कुछ अनजाना है,
एक किनारे पर मेरा है ठिकाना,
छोटी सी है नाव,
समुनद्र पार, उस किनारे पर है जाना !

ये रात बहुत है लम्बी, रौशनी है कहीं - कहीं,
जो कुछ थे सितारे, गये हैं घीर काले बादलों से कहीं,
जब दिखेगा, वो सूर्य का चषक,
आँखें नींद से खुलेंगी तब ही!!!...

Enjoy this latest Video buddies.

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