Friday, April 22, 2011

मेरा घर

एक किताब है मेरा घर,
पन्ने हैं कई सारे इसमें,
मोटी - जाडी सी है थोड़ी ये,
पिरभाषा की है इसमें कई किस्में !

मोटे कवर से बनी है ये,
फटने का नहीं इसका डर,
जोर से खीच कर पढने पर,
निकल आते हैं इसके धागे !

कुछ अंश हैं इसके अजीब से,
कुछ को समझना नहीं जा सकता,
प्रश्न - उत्तर की है लम्बी फेहरिस्त,
िक फेल होने का भय है रहता !

पन्ने है एक धागे से बंधे,
पर फिर भी है इनके अलग इरादे,
अलग है भाषा; बदरंग सी है रूपरेखा,
अर्थ हैं मजबूत; पर रहते फिर भी विपरीत !

कुछ अंशों में सच है छुपा,
कुछ में बिखेरी है अनूठी हंसी,
कुछ पन्नो में राज़ हैं छुपा,
कुछ पन्नो को पढने की अब है बारी !

अब कुछ पन्ने बार - बार पढने पर,
हो चुके हैं थोड़े से पुराने,
जो नहीं थे अब तक निकले,
उनकी अब आई है बारी.....

2 comments:

  1. In the book of life every page has two sides: we human beings fill the upper side with our plans, hopes and wishes, but providence writes on the other side, and what it ordains is seldom our goal.

    nice attempt umesh......

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  2. दिव्या जी,
    हर एक सपने का मुकाम जल्दी नही खड़ा होता. कुछ बातें कह कर नही बताई जा सकती. सब कुछ पा लेना ही नसीब नही होता. जाने अनजाने में कही बात भी जिन्दगी का सार बयान कर जाती हैं. जिन्दगी का कोना होता है, जो रौशनी का इन्तेजार करता है. पर, इन्तजार तो करना ही पड़ता है. मानवीय संवेदना का लिबास कुछ इन्ही शब्दों से झुलसता रहता है. सरलता का चोला अब नाकाफी है, भावनाओं के तन को ढकने के लिए...
    बहरहाल , आपकी प्रशंसा के लिए धन्य-वाद...

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