Thursday, May 5, 2011



दिशाएं

लिखने का मन नहीं था,
पर फिर भी लिख रहा हूँ,
पड़ने को अगर दिल न करे,
मगर तब भी पड़ना !

शायद मैं आपके लिए ही लिख रहा हूँ,
लिखता था, कोरे कागज़ की ज़मीन पर,
निशान अब भी हैं बाकी, अनसुने अंशों पर,
परन्तु नहीं है, प्यार की स्याही वाली दिल की कलम !

लिखता भी हूँ, और सोचता भी हूँ,
अजीब है, पर शब्द टटोलता हूँ कुछ दिल में,
कभी - कभार मिलाप होता है उनसे,
तब बाखुदा सा लगता है कविता का सरंजाम !

बावजूद इसके समझने की कोशिश हूँ करता,
शायद उमड़ आये प्यार, यही उम्मीद हूँ करता,
पतझड़ पर जो झड जायें, पत्ते ही क्यूँ होते हैं,
खुशबु जिनकी महका जाए, फूल ही वो क्यूँ होते हैं !

प्यार की बारिश में,
रिश्तों की ख्वाइश में,
दर्द भरी तन्हाई में,
दिल में ही क्यूँ - पनपते हैं सवाल ?

ऊब गया है मन, सुन सुन के गीत,
शब्दों का वो कोष, समझ नहीं आता,
दिल में भरा है दर्द या रुसवाई, समझ नहीं आता,
पर कमबख्त इसे दूर करने का सही वक़्त ही नहीं आता !

वादे तो बोहत करता था - किये भी थे,
पर निभा एक भी ना पाया,
आँखों की रौशनी के पीछे घोर अँधेरा है छुपा,
बस गम है इतना, की शब्दों में उनको - बयान नहीं कर पाया !

रूठ कर जो बैठी है जिन्दगी,
उसे अभी तक मना नहीं पाया,
पत्थर पर लकीर का फकीर नहीं हूँ,
इसीलिए, कई दर्द हैं ऐसे - जो दूर नहीं कर पाया !!
तभी तो, मासूम है खुशियाँ, जिन्हें अभी तक गवा नहीं पाया !!

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